सब कहते हैं ,
जब तूं पैदा हूई थी .
कितने रोये थे , पापा
पांचवी लडकी जो पैदा हो गई थी .
सब के चेहरे मुरझा गए थे ,
सब मूंह लटगाये खड़े थे , मानो हो गया हो घौर अन्याय ,
कितना कातिल है , यह संसार
लड़कों को सब चाहतें हैं , पर लड़कियों को कोई नहीं
पर मैं दिखला दूंगी
दुनिया को चमत्कार
और परम्परा को हटा दूंगी ,
की
सब चाहेंगे , लड़कियां , लड़के नहीं ..!!!!
- डॉ. मुकेश राघव
2 comments:
What a awesome theme Dr. Mukesh Raghav . We must be against female foeticide and child cruality.
Thanks
डॉ. मुकेश राघव जी , आपकी रचनाओं में जो मार्मिकता और संवेदनशीलता छिपी है , उसके लिए आप साधुवाद के हक़दार हैं , बस लिखते रहिये . नमस्कार
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