Thursday, June 30, 2011

आज , एक चवन्नी का अंत हो गया ..!!

दुनियाँ के चौराहे पर , पड़ी 
एक चवन्नी , उठा ली .
देखता हूँ , इस दुनिया के थपेड़ों  से , वह भी 
घिस गयी थी .
उस पर मुद्रित प्राक्र्तीक सोन्दर्य , दामन छुड़ाने लगा था , 
बस , चिकनी मिट्टी ने उस पर पड़े , खड्डों को भर रखा था .
मैंने उसे साफ किया 
पर 
यह , क्या ...???
आज 
एक चवन्नी का अंत हो गया 
चलन बंद हो गया .
- डॉ. मुकेश राघव 

1 comment:

श्रीमती अनुकम्पा छाबरा said...

डॉ. मुकेश राघव , आज के युग में इन्सान ही घिस जाता है , जिंदगी की ओहापोह में , लोकाचार और संघर्षों में , एक चवन्नी के प्रति आपका इतना स्नेह . साधुवाद