दुनियाँ के चौराहे पर , पड़ी
एक चवन्नी , उठा ली .
देखता हूँ , इस दुनिया के थपेड़ों से , वह भी
घिस गयी थी .
उस पर मुद्रित प्राक्र्तीक सोन्दर्य , दामन छुड़ाने लगा था ,
बस , चिकनी मिट्टी ने उस पर पड़े , खड्डों को भर रखा था .
पर
यह , क्या ...???
आज
एक चवन्नी का अंत हो गया
चलन बंद हो गया .
- डॉ. मुकेश राघव
1 comment:
डॉ. मुकेश राघव , आज के युग में इन्सान ही घिस जाता है , जिंदगी की ओहापोह में , लोकाचार और संघर्षों में , एक चवन्नी के प्रति आपका इतना स्नेह . साधुवाद
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