तुम्हें जनम से अब तक
किसी ने पहचाना तो वोह है ,तुम्हारा ईश्वर
किसी ने पहचाना तो वोह है ,तुम्हारा ईश्वर
भोला भाला चेहरा लिए
साधारण और सभ्य , भारतीय संस्कृति कूट कूट कर भरी है .
तुम में
और आज इन दरिंदों के बीच , तुम इतने समय घुट घुट कर जीती रहीं .
आदर्श का परिचय दिया !
पर तुम स्वछन्द और आधुनिक विचारों की न बन सकी.
घर की इज्जत की खातिर , बातों को दहलीज़ भी पार न करने दी .
अब भी देर नहीं बेटी , ईश्वर दरिंदों को अपने आप फल देगा
या
फिर किसी को निमित बना दरिंदों का नाश तो कर ही देगा .
डर , किसका ?? समाज का !!
कहाँ है यह समाज ?
जो औरत को जिल्लत की जिंदगी जीने को मजबूर करता हो !!
धिक्कार है , इस समाज को और उसके मुखोटे बदलते दरिन्दे !!
- डॉ. मुकेश राघव
साधारण और सभ्य , भारतीय संस्कृति कूट कूट कर भरी है .
तुम में
और आज इन दरिंदों के बीच , तुम इतने समय घुट घुट कर जीती रहीं .
आदर्श का परिचय दिया !
पर तुम स्वछन्द और आधुनिक विचारों की न बन सकी.
घर की इज्जत की खातिर , बातों को दहलीज़ भी पार न करने दी .
अब भी देर नहीं बेटी , ईश्वर दरिंदों को अपने आप फल देगा
या
फिर किसी को निमित बना दरिंदों का नाश तो कर ही देगा .
डर , किसका ?? समाज का !!
कहाँ है यह समाज ?
जो औरत को जिल्लत की जिंदगी जीने को मजबूर करता हो !!
धिक्कार है , इस समाज को और उसके मुखोटे बदलते दरिन्दे !!
- डॉ. मुकेश राघव
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