मैं
रद्दी खरीदता हूँ .............???
जिनको लोग फेंकते हैं
उन्हें मैं , प्यार से रखता हूँ .
क्योंकि मुझे पता है ,
दुनिया की नज़र में फेंकी हुई वस्तुएं
या
दुनियाँ की नज़र से फेंके हुए लोग ??
एक दिन ,
कालचक्र के फेर में
समाज / मशीन ...! !
में
घुसकर / मिलजुल कर ,
फिर नए हो जायेंगे .
- डॉ. मुकेश राघव
3 comments:
डॉ. राघव साहिब , आपका कविता संग्रह पढ़ा , चित्र मय काफी रोचक है , कविताएँ बहुत ज्यादा मार्मिक होने के साथ साथ , भाषा शैली से औत प्रोत हैं . ब्लॉग की सुन्दरता का बखान करना , ब्लॉग की तारीफ जितनी ज्यादा की जाये , कम ही होगी
सादर
डॉ. राघव साहिब , आपका कविताओं का ब्लॉग काफी सुंदर है और उतना ही सुंदर कविताओं का संग्रह और चित्र सहित प्रस्तुति .
साधुवाद
डॉ. जी , आप डाक्टर होने के साथ साथ और क्या क्या हैं , मैंने समस्त ब्लॉग देखे , अति प्रशंसनीय , आप कैसे भावुक इंसान हैं , यह इन सब से पता चल चूका है .
धन्यवाद .
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