Saturday, June 18, 2011

एक विडम्बना ..???

फूल......
      गुलाब का हो या बोगनविलिया का
      गेंदे का हो या पीटूनिया का 
      मुरझाया हुआ , देखा नहीं जाता .
सिक्का ...........
     पांच का हो या दस का
     सड़क पर पड़ा ,
     लोगों के पैरों में आत्ता
     देखा नहीं जाता .
देख सकता हूँ , किसी को हंसते हुए
रोना देखा नहीं जाता , 
देख सकता हूँ , किसी को मिलते हुए
बिछड़ते हुए    देखा नहीं जाता !!
- डॉ. मुकेश राघव

2 comments:

श्रीमती ज्योत्सना वैद said...

डॉ. मुकेश जी , कविता " एक विदमना " काफी अच्छी लगी , आप रचना की प्रस्तुती अप्रोक्छ रूप से करतें हैं , सादुवाद के हक़दार तो है , साथ साथ मेरे भाई आज के युग में पांच का सिक्का मिले तो मेरे लिए , संभाल कर रख लेना .
धन्यवाद

श्रीमती संध्या मालिक said...

डॉ. राघव जी , अति सुंदर ब्लॉग में , रचनाओं के साथ चित्रों का समावेश काफी प्रभावशाली है . भाषा शैली भी आज के युग के अनुसार ठीक है.
साधुवाद