Sunday, June 19, 2011

मैं रद्दी खरीदता हूँ .??

मैं 
रद्दी खरीदता हूँ .............???

जिनको लोग फेंकते हैं 
उन्हें मैं , प्यार से रखता हूँ .
क्योंकि मुझे पता है ,
दुनिया की नज़र में  फेंकी हुई वस्तुएं
या  
दुनियाँ की नज़र से फेंके हुए लोग ??
एक दिन , 
कालचक्र के फेर में
समाज / मशीन ...! !
में 
घुसकर / मिलजुल कर ,
फिर नए हो   जायेंगे .
- डॉ. मुकेश राघव 

3 comments:

श्रीमती कमलेश भार्गव , अजमेर said...

डॉ. राघव साहिब , आपका कविता संग्रह पढ़ा , चित्र मय काफी रोचक है , कविताएँ बहुत ज्यादा मार्मिक होने के साथ साथ , भाषा शैली से औत प्रोत हैं . ब्लॉग की सुन्दरता का बखान करना , ब्लॉग की तारीफ जितनी ज्यादा की जाये , कम ही होगी
सादर

श्रीमती शिवांगी कामरा said...

डॉ. राघव साहिब , आपका कविताओं का ब्लॉग काफी सुंदर है और उतना ही सुंदर कविताओं का संग्रह और चित्र सहित प्रस्तुति .
साधुवाद

श्रीमती गौरी सक्सेना said...

डॉ. जी , आप डाक्टर होने के साथ साथ और क्या क्या हैं , मैंने समस्त ब्लॉग देखे , अति प्रशंसनीय , आप कैसे भावुक इंसान हैं , यह इन सब से पता चल चूका है .
धन्यवाद .