मंद मंद बह रही थी , पुरवाई महकते फूल , कलियाँ इठलाई
हर तरफ , ख़ुशी का आलम था .
कोशों दूर तक थी , उनसे तन्हाई
पर अचानक
एक झोंका हवा का जो आया
गिर गए चंद पात , शाखों से .
देखकर , उनका यह गमें मंज़र
चीख उठे तमाम नवपल्लव
चू पड़े थे , अश्क आँखों से
कि
कल अपना भी यही समां होगा .
- डॉ. मुकेश राघव
4 comments:
Dr. Raghav, I have red all the poems of yours ....Oh!! My God So much emotional and sentimental., where were you till this date . Welcome to KAVAY GOSTIES , I will inform you through this messanger.
Thanks
डॉ. मुकेश जी , कितनी और मार्मिक कविताएँ समेटे बैठे हैं ?? हर कविता लगता है पात्र मुझे ही चूना है. सभी रचनाएँ अति उत्तम हैं .
धन्यवाद
डॉ. राघव साहिब , अच्छे और संवेदनशील ब्लॉग के लिए साधुवाद
डॉ. राघव साहिब , आपकी कविताएँ वास्तव में अंतर्मन को छू जाती हैं . क्या दर्द ही कविता का नाम है .
धन्यवाद
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