Sunday, June 26, 2011

एक श्रधान्जली ....

आपको 
क्या अधिकार था ??.... कि 
बिन मुझ से पूछे , चली आंईं 
मेरे जीवन में स्नेह कि ज्वाला जलाने
बिजली कि तरह 
और 
बिन पूछें , अचानक ही चली गयीं 
इतनी दूर ...!!!
मेरा 
जीवन में उत्साह भर , कर 
अकेला 
बेसहारा 
जिंदगी भर , पछताने  को .
- डॉ. मुकेश राघव 

2 comments:

श्रीमती सायानी पिट्टर said...

डॉ. मुकेश जी , आप का काव्य संग्रह काफी मार्मिक तो है ही , परंतू प्रस्तुती ने मार्मिकता को ढक ते हुए , काफी कुछ कह दिया ., भावनाएं तो मानो आप के पास भागी चली आ रहीं हैं .
धन्यवाद

श्रीमती सिमरन कौर said...

डॉ. मुकेश राघव , मेरे समझ से परे है कि एक डाक्टर , इतना अच्छी रचना कैसे कर सकता है ? कृपया अन्यथा न लेंवे ? रचनाएँ बहुत अच्छी हैं कि उनके बारे में कुछ कहना बेमानी होगा .