क्या कहा !!
वो नहीं रहीं ...??
पर , आप में तो
जीने की तम्मना कूट कूट कर भरी थी .
जीवन में संघर्ष करते हुए ,
अभी अभी आप का शरीर पंचतत्व में विलीन हो रहा है .
शरीर नहीं होगा , मुझे मालूम है .
शरीर नहीं होगा , मुझे मालूम है .
पर
ऐसे अवसर पर , मैं आप को नहीं देख सकता .
काफी कमजोर दिल है , मेरा
शायद , आप से जुडाव या मेरी आप से जुडी भावनाएं .
...............!!!!!
एक कटु सत्य , मगर बहुत कडुवा .
कितना अनुशासनात्मक जीवन , सादा जीवन ,
हाँ , विचार कुछ अजीब और विचित्र , अब सब कँहा गया ....??
बस , एक यादगार बन कर रह गया .....!!
अश्रुपूरित धारा , अनवरत बह रही है .
दिल दुखी है , दिमाग संयत नहीं है .,
फिर भी ... लेखनी चल रही है .
फिर भी ... लेखनी चल रही है .
आप कहाँ गईं हैं ?? मुझे मालूम है .
आप के लिए स्वर्ग के दरवाजे खुले हैं .
- डॉ. मुकेश राघव
4 comments:
डॉ. राघव , कविताओं का संकलन काफी अच्छा है. पंचतत्व में विलीन हो रहा है , कविता वास्तविक सी लगती है वैसे भी , यह एक कटु सत्य भी है. स्वर्ग में जाने का रास्ता देखा ? साधुवाद
डॉ. मुकेश राघव जी , आप का ब्लॉग देखा ., रचनाएँ अति सुंदर पर मन को छू लेने वाली , भाषा शैली तक़रीबन आज के चलन जैसी ., ब्लॉग की सुन्दरता अति उत्तम . साधुवाद के पत्र तो आप है हीं .
डॉ. साहिब , बहुत अच्छी कविताएँ लगी , एक साहित्यिक कविता संग्रह प्रकाशित करवा लें तो हमें पढने में आसानी होगी ., कविताएँ कितनी अच्छी हैं इस बारे में कोई मीटर तो है नहीं . मुझे काफी अच्छी लगीं .
धन्यवाद
डॉ. मुकेश जी , आपके अनेकों ब्लोगों से गुजरा पर संवेदनशील होने के कारण आपका कविता संग्रह ही रोचक और भावों से भरा हुआ लगा . पेशे से डाक्टर , और कविताएँ , क्या संयोग है ??
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