फूल......
गुलाब का हो या बोगनविलिया का
मुरझाया हुआ , देखा नहीं जाता .
सिक्का ...........
पांच का हो या दस का
सड़क पर पड़ा ,
लोगों के पैरों में आत्ता
देखा नहीं जाता .
देख सकता हूँ , किसी को हंसते हुए
रोना देखा नहीं जाता ,
देख सकता हूँ , किसी को मिलते हुए
बिछड़ते हुए देखा नहीं जाता !!
- डॉ. मुकेश राघव
2 comments:
डॉ. मुकेश जी , कविता " एक विदमना " काफी अच्छी लगी , आप रचना की प्रस्तुती अप्रोक्छ रूप से करतें हैं , सादुवाद के हक़दार तो है , साथ साथ मेरे भाई आज के युग में पांच का सिक्का मिले तो मेरे लिए , संभाल कर रख लेना .
धन्यवाद
डॉ. राघव जी , अति सुंदर ब्लॉग में , रचनाओं के साथ चित्रों का समावेश काफी प्रभावशाली है . भाषा शैली भी आज के युग के अनुसार ठीक है.
साधुवाद
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