Tuesday, June 7, 2011

खरीददार का इंतजार

हम सभी  ,
घडिओं की दुकान
पर पड़ी
बंद घडिओं के समान  हैं .
जिन्हें इंतजार है,
एक खरीददार का ,
जो हमें चला सके.,
और
तत्पश्चात,
हम
उसे चला सकें .

- डॉ. मुकेश राघव

6 comments:

Dr. Mukesh Raghav said...

Dr. Joga Singh Ji , upvas ka kaam hi kya , thora swasthya bhi naram tha , kary slow hua. ab to bus intzar hae , ek kharidadar ka.
In after noon you were busy in sahityik gosty on fb.
Regards

श्रीमती श्रधा गुहा , दिल्ली said...

डॉ. राघव जी , आपका कविता संग्रह देखा . समय के चक्कर में ही उलझ गई . समय कितना बलवान समझती मैं ?? समय तो खुद तलाश में है , एक खरीददार की जिस से दोनों चल सकें . क्या व्याख्या की है समय और मानव की , लगता है दोनों एक दुसरे के पूरक हैं . कोन किस को चला रहा है , एक पहेली मात्र है.
रचना के लिए आप महोदय साधुवाद के पात्र हैं .
धन्यवाद

Unknown said...

"डॉ. साहेब घड़ियों की चित्र मय प्रस्तुति सहज लगी मेरी रचना याद आगई
"घडी सदाई टिक-टिक कैवे,ना खुद टिके ना दुजां ने टिकण देवे"साधुवाद सर "

श्रीमती सारा गौतम said...

डॉ. मुकेश राघव जी , सबसे पहले आप को इस ब्लॉग के लिए धन्यवाद . आपके प्रोफाइल और इस ब्लॉग की सामग्री में काफी अंतर है . आप की जितनी तारीफ करूँ , कम होगी . कविताएँ बहुत अच्छी हैं . समय की घडी भी इंतज़ार में है ....?
सादर

श्रीमती अंशिका बोहरा , अबोहर said...

डॉ. मुकेश जी , आपका ब्लॉग सुंदर तो है ही , परन्तु पठनीय सब कुछ बहत ज्यादा मार्मिक है , आप हास्य रस की कविताएँ लिखें तो काफी आनंद की अनुभूति होगी , क्यों की ये संसार दादों का मारा है , कुछ पल हंसी के मिल जाएँ तो क्या बुरा है.
धन्यवाद

डॉ. अनुराधा कौशल said...

डॉ. राघव साहिब , आप कविताओं का संकलन कितना विशाल है ? कितना मार्मिकता से ओतप्रोत रचनाएँ लिखना प्रसंशनीय है