Wednesday, June 8, 2011

कितना नासमझ है , ये मानव मन

कितना
भोला , समझता है , इन्सान
ईश्वर को
एक खिलौना
समझते हैं  लोग ईश्वर को,
कि
माफ कर देगा .
वह लाखों पाप ,
अत्याचार
और
अन्याय , मात्र एक बार , उसकी आराधना करने से
पर शायद नहीं.
ईश्वर कभी न 
बक्शेगा  उन्हें ,
बस
हंस कर कह देगा
अरे इन्सान !! 
पहले मेरी परीक्षा में पास तो  हो जा
और मन ही मन बुदबुदयेगा
कितना नासमझ है  ये मानव मन और उतना ही  कमजोर .
 मेरी परीक्षा में तो कोई फेल नहीं होता !!!!
                                                     -डॉ. मुकेश राघव

4 comments:

श्रीमती ललिता जैन " व्याकुल " said...

डॉ. मुकेश जी , आप का काव्य संकलन , अति सुंदर ब्लॉग पर देखा , पेशे से डाक्टर और रुचि कविता में भी . अति सुंदर .
आप साधुवाद के पात्र हैं .

श्रीमती स्मृति माथुर , धोलपुर said...

डॉ. मुकेश राघव जी , कविताओं का संकलन और प्रस्तुती काफी प्रभावशाली , संवेंदंशील और मार्मिक हैं . ईश्वर ... के बारे में कविता एक कटु सत्य है .
धन्यवाद

Unknown said...

dr.saheb aapaki rachanayen padkar to esaa lagata hai aap hindi m doctret kiye hai etani sahaj saras staya sadhuwad

Leeladhar Joshi said...

Dr. raghav , Hum general public person do not have any support and God is the suppot with us. Where to go .....NASAMAJH , word was not palatable.
Jai Shri Ram