Saturday, June 4, 2011

क्यों हँसतें हैं , लोग ...किसी के गिर जाने पर !!

पता नहीं , क्यों हँसतें हैं , लोग
किसी के गिर जाने पर !!
शायद ,
उसके गिरने पर हो आता हो ....
अपने ऊँचा  होने का अहसास इसीलिए 
शायद
गिरे हुओं की  मदद , करने का कहाँ था ???
समय , उनके पास .
अभी यही सोचता जा रहा था
कि
सीडिओं से गिर पड़ा ...
सकबका सा गया था मैं ??
गिरते गिरते नीचे पहुंचा , तो देखा ....
हंस रहे थे , सब
मेरी नादानी पर !!!
- डॉ. मुकेश राघव

6 comments:

श्रीमती सुशीला बागड़ी said...

डॉ.मुकेश जी , क्यों हँसते हैं लोग ...., यथार्थवादी , सामयिक और भाषा शैली से औत प्रोत है . आप के लेखन में प्रकाशन की , जो कला है , वह पाठक को रचना पड़ने के लिए मजबूर कर देती है . पाठक रचना में , इतना तलीन हो जाता है , कि वह अपने आप को उन में खोजता रह जाता है. रचनाएँ बहुत बहुत अच्छी ही नहीं , संवेदनशील भी हैं ,
साधुवाद .

श्रीमती श्वेता सपरा, जयपुर said...

डॉ. राघव , आप ने किस विषय में PHD की हुई है , मुझे याद आ रहा है , आप ने मेरे साथ ही हिंदी साहित्य में यह उपाधि प्राप्त की थी , आप की रचनाओं में संवेदनशीलता के साथ साथ मार्मिकता की भी झलक देखने को मिली . बहुत बहुत धन्यवाद .

Unknown said...

dr. saheb sadhuwad natural rachana va photo ke liye

श्रीमती शिवांगी बोहरा , अजमेर said...

डॉ. मुकेश राघव जी , आपकी मार्मिक , संवेदनशील से औत प्रोत ब्लॉग देखने का मौका मिला . कविता संग्रह काफी अच्छा था , चाहे वह भाषा शैली हो या अभिवक्ति , अति सुंदर है. आप कवि सम्मेलनों में जरूर आया करें .
ब्लॉग के लिए आप साधुवाद के हक़दार हैं .

Unknown said...

oooh, mayi god,yahan bhi upavas chal raha hai .

श्रीमती मोनिका माहेश्वरी , दिल्ली said...

डॉ. मुकेश जी , आपका ब्लॉग अति सुंदर , मार्मिक कविताओं से औत प्रोत , कहीं जिन्दगी के माने हैं , तो कहीं नारी उतपिरण , लगता है , आपने नारी की मानशिकता को बहुत नजदीक से देखा है . बहुत खूब .
सादर