Thursday, June 2, 2011

नाम ... का जुडाव केवल राख से.......????

चंद्रमा के समान
नाम  के भी चारों और ,
घूम रहे थे , सितारे
क्रमश:
कुमार , स्कूल में
मिस्टर ,  कॉलेज में
श्री , यहाँ ऑफिस में
और
फिर नाम रूपी चंद्रमा
के
ढलने पर , यकायक              
स्वर्गीय ...!!!
कैसी है , यह विडम्बना फिर भी चंद्रमा घिरा था ,
तारों से
और
नाम केवल राख से.......????
- डॉ. मुकेश राघव  

5 comments:

Unknown said...

CHITRA SAHIT PRSTUTI NE RANG JAMA DIYA DR. SAHEB

Dr. Patnayak,V.K said...

Mukesh Ji, You have got the blessings of man SARASWATI , that is the only reason that you write in such a nice way of presentation. You write very serious , touching and sentimental poetary.
It is aashirwad of almighty.
Thanks

Shubhu Nayak said...

Dr. Raghav, I do not think you are a normal human being, as I have heared , You are a good surgeon. Read all the poems leading to AANKHEN NUM HO JATI HAEN.
Regards

श्रीमती अनुकृति पाठक , जोधपुर said...

प्रिय डॉ. मुकेश जी , मैंने कभी सोचा भी न था कि एक शल्य चिकित्सक , कवि भी हो सकता है . वास्तव में आपकी रचनाओं में , भावुकता , दिल के घावों को हरा कर देने वाली हैं . एक व्यक्तिगत बात , क्या सभी साहित्यकार इसी तरह के होतें हैं . आप कि सबसे अच्छी रचना " कमल सपरा जी ..." लगी , कवि ने उस कविता को आज के समाज को ध्यान में रख है . भाषा अच्छी है . आप साधुवाद के पात्र हैं .
सादर.

धनपत राम " भ्रम " said...

डॉ. मुकेश राघव जी , आपका काव्य संग्रह तारिफ्फे काबिल है . इस तरह की रचनाओं से आप समाज को परोकच्छ या अपरोक्च्छ रूप से कितनी जाग्रति पैदा करने की कोशिश करतें हैं . बहुत बहुत सुक्रिया .