वह जा रही थी ,
निरुद्वेश्य ,
नि:सहाय सी
चित्र लिखी , निवस्त्र सी ,
समाज की नज़र में
पागल जो थी..... ??
आँचल से नवजात शिशु चिपकाये ,
ममत्व की भावनाओं से ओतप्रोत !!!
पागल जो थी..... ??
एक पुरुष स्वर सुना ....
" क्या संभालेगी इसे ?? "
ठीक ही कहा होगा !!
क्योंकि वह स्वर , एक पुरुष का जो , था .
वह मन ही मन कुछ बोलता चला जा रहा था ,
ख़ैर ...............
क्योंकि वह पागल थी .....??
पर
उसे क्या कहें , जिसके पागलपन के नतीजे
का यह फल था.... ,
एक नवजात शिशु !!!
विडम्बंना..... ???
कहाँ है , वो इंसानी दरिंदा ...... एक पुरुष !!
वो समाज और उसके ठेकेदार , कहाँ हैं .....?
सब कुछ गौण है ...?
मात्र तमाशबीन
बस
सब अपनी अपनी रोटीआं , सेक रहें हैं
बेबश तो मात्र है , एक नवजात शिशु
और
इस संसार में ममत्व लिए ,
एक पागल नारी ...!!!
क्या है कोई जवाब
कोई
मंच , जिसके पास हो इसका
समाधान
नहीं , तो
धिक्कार
है
हम सब का जीवन ..........
: डॉ. मुकेश राघव
क्या है कोई जवाब
कोई
मंच , जिसके पास हो इसका
समाधान
नहीं , तो
धिक्कार
है
हम सब का जीवन ..........
: डॉ. मुकेश राघव
4 comments:
डॉ. राघव , आप ने नारी से सम्बंधंदित कविता लिखी , यथार्थ से कहीं कम नहीं लिखा ? आप की सोच नारी जाग्रति के बारे में है , परन्तु ध्यान रखना , अभी भी नारी, पुरुष की कटपुतली बन कर , जैसा वह नचाना
चाहता है . किशी मंच की बात करना बेमानी लगता है , क्योंकि पुरुष अभी भी नारी को एक ही लिहाज़ से देखता है . कारण है , नारी जाग्रति की कमी . , सब मंच जैसा आप महोदय ने लिखा , अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं और नारी की विचित्र सी वस्तु बन कर रह गई है , नारी होने के बावजूद मैं यह कह रही हूँ की नारी में एकता का आभाव है . " सोहे क्यों नारी को नारी " वाली बात एक कटु सत्य बन कर धरातल पर मौजूद है .
डॉ. साहिब , आप की कविताओं में कोई न कोई जादू है . लगता है ,कविताओं की तरह आपको पात्र और आप स्वंय , काफी भावुक हैं . माफी चाहूंगी , मैंने व्यक्तिगत सी भाषा में लिख दिया , पर यह सच है की भावुकता की अंगुलियाँ पकढ़ कर जीवन की यात्रा तय नहीं होती . कविताएँ काफी मार्मिक और भावुक है , की मैने एक संस्था खोलने का विचार बनाया है , जिसमे महिलाओं की विभ्भिन्न समासयों का समाधान करने का प्रयाश किया जायेगा . इस सोच के पीछे , आप की मदद लेनी होगी. आप जैसे इंसान , इस संसार में बहुत कम मिलते हैं . भगवान से कामना है की आप सुखी और स्वस्थ रहें .
सादर.
Dr. Raghav, I could guess your taste of literature and liked all the poems , but surprised to see your profile.. a medico writting poems. wonderful., what a beauty of blog .
Thanks
Dr. Mukesh Ji , poem is very very nice. Daily such incidences are happening ., and we the contractors of society are just watching. There is a need of change in system. Which is not in our hand., hence in emotions the author is quite right ,but practically he is wrong. Poem is eye opener for thinking minds ??
Regards
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