Wednesday, May 25, 2011

पत्तझढ़.............!!!!!!!!!

नए नए रिश्ते
खिलतें हैं ,
फलते फूलते हैं ,
 
और ,
यकायक
सूखे पत्तों की तरह
टूट जातें हैं ......
इन गहराहियों में,
जिनके भीतर
देख सकने की
हिम्मत
और
शायद ..................................................  क्या ??
यथार्थ में ,
हम से
समय ने छीन ली है .- डॉ. मुकेश राघव

3 comments:

प्रदीप कुमार शर्मा , झाँसी said...

डॉ. साहिब , बढा ही आश्चर्य होता है कि आप , इतनी विधाओं के धनि हैं , इतनी कविताएँ वह भी एक से एक बढ़कर , मार्मिक , संवेदन शील और आत्मा कि आवाज़ लगती हैं ., जीवन का कटू सत्य आप महोदय , हम में भी कुछ कर गुजरने कि और अग्रषित करतें हैं , पर डॉ. राघव साहिब , घर परिवार के सो सो झंझट , इस तरह का कुछ करने ही नहीं देता ., माफ करना , मुझे पता है आप भी सांसारिक हैं . नत मस्तक करता हूँ .

डॉ. मुकुल शेवाग said...

डॉ. राघव साहिब , आपकी साहित्यिक रुचि और शब्दों को गूंथ कर आप नें समाज एवं उसमे व्यापत आपा धापी को उजागर किया है .संवेदनशीलता , भावनाओं की अभिवयक्ति , इतने अच्छे तरके से की गई है कि एक बार तो मुझे लगा " ये कविताएँ मुझे पात्र........... "
समझ कर शब्दों को माला का रूप दे , कर समाज के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं .
धन्यवाद

श्रीमती वसुंधरा पारीक , जोधपुर said...

प्रिय राघव जी , आपका ब्लॉग अति सुंदर होने के साथ साथ , कविताओं की प्रस्तुती काफी रोचक तरीके से की गई है . अधिकतर रचनाओं में मार्मिकता , संवेदनशीलता तो कभी रोचकता भी झलकती है . मेरा अपना मत्त था की शल्य चिकित्सक काफी कठोर दिल वाले होते होंगे , परंतू आपमें तो भावुकता कूट कूट कर भरी है . भावुकता को अपने कार्य शैली में भी शामिल कर लेवें , क्योंकि आपका पेशा ऐशा ही है. बिन मांगे सलाह दे डाली , कृपया अन्यथा न लें .
धन्यवाद