आज अचानक , अपने आँगन में
शैशव का यूँ , देख मचलना
झूम उठा , मेरा भी अंतर्मन
मानो
लौटा हो , फिर से बचपन !!
वही मचलना .. वही रूठना
इस नन्ही चाहत में
पल में हँसना , पल में रोना
मनमोहक अंदाज़ लिए
एक पल को लगा .....??
और...........
मैं उन्मुक्त निश्छल ठहाके लगा सकूं
अवाक् सा
वर्षों पीछे लड़कपन में
इतना खोया हुआ
था , खिलखिला के हंस पड़ा , इस दुनियां से दूर
चन्द मुक्त सांसें ले सका .
बस तभी एक नारी स्वर आया .........
" अरे , सब्जी तो लेते आना ! "
क्या अजीब था , वह बचपन.
कितना हसीन था वह बचपन ...!!!!!" अरे , सब्जी तो लेते आना ! "
क्या अजीब था , वह बचपन.
- : डॉ. मुकेश राघव
4 comments:
Dr. Mukesh, I came to know that you are a great poet also through this beautiful blog. Once a while I went in my bachapan , and restored the memories..but all in vain. Congates for the lovely poems.
Thanks
Dr. Mukesh, you are a good artiest of every field. Poetary is heart touching, waited till this time, but no poem today.Write some thing on Laughing. Serious poetary is the name of Life.
डॉ. मुकेश जी , मैंने आपका अतिसुंदर ब्लॉग ब्लॉग देखा , कविताओं का संकलन भी काफी मार्मिक और ह्र्दिया स्पर्शी है. साहित्य में छुपाने लायक कुछ नहीं होता . आज किन्ही बेकार की बातों से परेशां थी , नेट चला लिया . आपका यह ब्लॉग पढ़कर , तो बस आंसू रोके ही नहीं जा रहे थे . इतना मार्मिक चित्रण नहीं किया करें . वैसे अच्छा भी है . ये रूलाने वाले पात्र भी तो हमारे इर्द गिर्द घूम रहें हैं . लगता है जैसे , आपने हिंदी साहित्य में उपाधी प्राप्त कर रखी है .
मुकेश जी , आज सुबह सुबह अख़बार आया नहीं , मैनें सोचा , चलो अंतर्जाल पर ही कुछ सामग्री मिल जाये , तोबा !!! ऐसी कविताएँ , जिन्हें मैनें पहली बार देखा , काफी रोचक प्रस्तुती है , काफी सराहनीय भी , आपके कवि रूप के बारे में कभी सुना नहीं , शायद आपने पन्दुबी की तरह, सतह पर नज़र रखे , हुए एक दम बाहर आये हैं . स्वागत है. कविताएँ बहुत अच्छी हैं .
नमस्कार
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