मानव सेवा के लिए तत्पर
जब भी पुकारो , चले आते हो
याद है ,
हम तुम, दोनों साथ साथ थे
मैंने तुम्हें, उस मानव की सेवा के लिए
कहा था .
तुमने साफ इंकार कर दिया था ?
पर क्यों ....
क्योंकि.......??????
वह अपाहिज था ?
नहीं ??
क्योंकि.......??????
वह अपाहिज था ?
नहीं ??
तब समझ आया ,
जब तुम्हीं ने कारन बतलाया ,
अवश्य वह गलत था
और
तुम सही , संस्कारी थे !!
इसी तरह चलते रहो , तुम अमित हो
पर फिर इस व्यक्ति को समझाने ,
मैं गया था ............
और जवाब मिला था , ....तुम्हें मतलब ??
मैं अवाक् सा रह गया था ,
3 comments:
Dr. Raghav , I have read your number of article in various magazines, but field of poetary was not known to me. You are doing MANAV KI SEVA . Nice poem,I am unable to understand from where you get time for all these things.
डॉ. राघव साहिब , मैं आपके साहित्यिक रूप से भली भांति परिचित हूँ . आपकी कविता " मानव की सेवा " आप पर भी लागू होती है . कितने वर्षों से आप यह ही तो करते आयें हैं . ब्लॉग के साथ दोनों कविताएँ काफी सुंदर लगी .
धन्यवाद .
Dr. mukesh Ji , Nice Blog and poetary too. All the poems were read by me and I could find some gramatic mistakes, may be , because of translation, as writting in Hindi on NET is very difficult. Take care. YAHAN HAVAN MEN BHI HAATH JALTEN HAN.
Thanks
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