मेरी जिन्दगी में , दो मिनट को भी
कोई मेरे पास नहीं बैठा था .
अपने और गैर दोनों ही
दोस्त और दुश्मन दोनों ही थे
पूरा मोहल्ला ही एकत्रत हो गया था .
आज तक मुझे , कोई तोफा न मिला
था ,
पर तरस आ रहा है , उस हाथ पर , जिसने मुझे कपड़ों से धका था.
मैं , आज मालाओं से लादा जा रहा था ...
जैसे दुनिया का रूप ही बदल गया था
चलने को तैयार न होता था , कोई
पर , आज तो काफिला बन कर
मुझे कन्धों पर उठाए हुए , चले जा रहे थे ...
आज पता चला , मौत इतनी हसीन होती है .
कम्बक्ख्त , हम तो यों , ही जिए जा रहे थे ???
- डॉ. मुकेश राघव
3 comments:
dr.saheb ,es rachana ke dwara anchhuya pahalu apane chhuliya sadhuwad-2-2-2
डॉ. मुकेश राघव , जीवन के कटू सत्य को उजागर करती आपकी रचना बहूत मार्मिक है . पढकर एक बार तो मुशानियाँ वैराग छा गया , परंतू कटू सत्य इस संसार में एक ही है , और वह है मौत !
साधुवाद
Dr. Mukesh , you have high lighted the fact of life, I feel you have seen life from very near that to by heart and mind.
Thanks
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