Monday, June 13, 2011

मौत इतनी हसीन होती है .......! !

मेरी जिन्दगी में , दो मिनट को भी 
कोई मेरे पास नहीं बैठा था .
आज सब मेरे पास बैठे थे ,
अपने और गैर दोनों ही 
दोस्त और दुश्मन दोनों ही थे 
पूरा मोहल्ला ही एकत्रत हो गया था .
आज तक मुझे , कोई तोफा न मिला 
था , 
पर तरस आ रहा है , उस हाथ पर , जिसने मुझे कपड़ों से धका था.
मैं , आज मालाओं से लादा जा रहा था ...
जैसे दुनिया का रूप ही बदल गया था 
एक वक्त , दो कदम भी साथ 
चलने को तैयार न होता था , कोई 
पर , आज तो काफिला बन कर 
मुझे कन्धों पर उठाए हुए , चले जा रहे थे ...
आज पता चला , मौत इतनी हसीन होती है .
कम्बक्ख्त , हम तो यों , ही जिए जा रहे थे ??? 
                                                       - डॉ. मुकेश राघव

3 comments:

Unknown said...

dr.saheb ,es rachana ke dwara anchhuya pahalu apane chhuliya sadhuwad-2-2-2

प्रसून सोनी said...

डॉ. मुकेश राघव , जीवन के कटू सत्य को उजागर करती आपकी रचना बहूत मार्मिक है . पढकर एक बार तो मुशानियाँ वैराग छा गया , परंतू कटू सत्य इस संसार में एक ही है , और वह है मौत !
साधुवाद

Rameshwar Sarswat said...

Dr. Mukesh , you have high lighted the fact of life, I feel you have seen life from very near that to by heart and mind.
Thanks